क्या आपने कभी किसी को गले लगाया है? यह कैसा सवाल हुआ भला! कौन होगा जिसने कभी किसी को गले न लगाया होगा। चलिए रिफ्रेम करती हूँ।
कभी ऐसे गले लगाया है जिसमें ज़िस्म की हरारत या हरकत महसूस ही न हो बस आत्मिक कसाव में जकड़ जाए हम। कभी ऐसे कि जिसे लगा रहे हों उसे बिना कहे कह रहे कि जाने न देंगे। कभी ऐसे कि उसकी वेदना का एक टुकड़ा और उसकी हँसी का एक अंश रह जाए आपके भीतर।
कभी ऐसे गले लगाया है आपने कि सैकड़ों की भीड़ हो लेकिन नज़र उस पर पड़ गई तो फिर बीच की सारी दुनिया गायब और आप हुमक के बढ़ चले, परवाह सिर्फ उससे मिलने की रही किसी के देखने की नहीं। प्रेमी न रहा हो वह तब भी किसी को ऐसी आतुरता और लगावट से गले लगाया है जिसमें सिर्फ मिलने का उत्साह रहा हो?
ज्यादातर लोगों ने ऐसे तो किसी को जरूर गले लगाया होगा कि गले भींचने के अंदाज़ में सांस घुट सी जाए। जिसको कहते हैं लग जा गले कि फिर मुलाक़ात हो न हो -उस अहसास में डूब, न जाने कब मिलें, अबके बिछड़े तो मिलें भी कि नहीं इस तड़प के साथ, कभी न जाने देने की उम्मीद और लगाव के साथ - ऐसे तो लगाया होगा न?
और किसी को ऐसे कि वह इस धरती का आखिरी पुरुष या स्त्री है जिसके गले लगने की कामना कभी खत्म न होगी? उसके गले लगने पर मानो पूरी पृथ्वी अंक में समा जाती हो। उसको जाने देना क्या कहें उससे दूर जाना जीते-जी असंभव हो।
किसी गले लगने में यह भी रहा होगा
रस हसरत का निचोड़ दूँ, कस बाहों में आ तोड दूँ
तुझे छीन लूँ या छोड़ दूँ, मांग लूँ या मोड दूँ
मेरी बेबसी का बयान है...
बेबसी जैसा गले लागना और छूट जाना, छोड़ देना। है न!
किसी को गले लगाते हुए आप इस हाल में रहे हैं कि चाहे कुछ भी कर लें पर इसके साथ तो नहीं हो सकते बस इस आलिंगन की एक स्मृति भर थमी रहेगी अब आमरण। कैसे उस समय बाँहें हटाई होंगी आपने उससे। कैसा पत्थर कालजे पर रखा होगा या कैसा निर्मोह!
कोई सब हार के समा गया है कभी आपकी अँकवारी में? कभी ऐसे गले लगाया है आपने किसी को मानो उसी से सब ठीक हो जाएगा। ठीक होना ही होगा।
देह की सम्पूर्ण आकांक्षा के साथ और देह से परे भरोसे और परवाह के साथ गले लगाना इस दुनिया में मनुष्य होने की कुछ बड़ी नेमतों में है।
इसके अलावा कभी किसी अजनबी को देख, उसके चेहरे को पढ़ अचानक बढ़े हैं उसकी ओर कि इसे गले लगा लेने की बड़ी जरूरत है। इसे नहीं थामा तो कभी भी भरभरा कर गिर पड़ेगा/गी। शायद ऐसे कम अनुभव हों। आपके पास हों किसी के पास न भी हों क्योंकि गले लगाने को लेकर हमारे देश में सहजता कम है। पर किसी अनजान को अँकवारी में भर ले सकना कि कुछ देर को ही सही उसका दुख कहीं अटक जाएगा। चेखव के घोड़ेवाले के घोड़े की तरह ही सही बांट लेंगे उस अनिवर्चनीय दुख को जिसे कह नहीं सकता वह अजनबी।
इससे अलग पुछूँ तो कभी किसी ने आपके अंक में अपने को सुरक्षित महसूस किया है। बिना लाग लपेट के कोई बढ़ आया है गले मिलने? किसी ने गले लग के गिरेबान भिंगोया है आपका? किसी से बस यूँ मिलने गए हैं कि गले लगना है या फिर उसने आपको बुलाया हो कि गले लगाना है तुमको। शायद तब आपको एक बेहतर इंसान कहा जाएगा आपको।
नहीं! मैं इस गले लगने-लगाने को रोमांटिसाइज़ नहीं कर रही। बस गले लगने के हज़ारों मोमेंट्स को रेखांकित कर रही। हाल में गले लगाने की एक तस्वीर लोकप्रिय हुई तो यह ख्याल आया कि गले लगना-लगाना कैसा खूबसूरत होता है।