Tuesday, October 18, 2016

तुम्हारा आगमन

तुम्हारा आगमन है
जब नांदी पाठ करते
दक्षिणावर्ती शंख से तुम्हारे नयन
प्राणों को बना जाते हैं स्वस्त्ययन...
तब उत्सव वस्त्र धारण करता हुआ काल
सप्त द्वीपों को पूरने लगता है दैविक मन्त्रों से

जब कोमल दूर्वा-सा तुम्हारा नारायणीय स्पर्श
उकेर जाता है आप्त श्रुति
तब ग्रह पथ गूँज उठते हैं
औपनिषदिक अभिवन्दना से
हाँ प्रिय
तुम्हारा आगमन
एक अनवरत घटित होता अनुष्ठान है
तुम्हारा स्वर उद्गीथ होकर
उपदिष्ट करता है
और
दिशा दिशा किरणमय हो उठती है
पुण्यशकुन महामंत्रो से

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