तुम्हारा आगमन है
जब नांदी पाठ करते
दक्षिणावर्ती शंख से तुम्हारे नयन
प्राणों को बना जाते हैं स्वस्त्ययन...
तब उत्सव वस्त्र धारण करता हुआ काल
सप्त द्वीपों को पूरने लगता है दैविक मन्त्रों से
जब नांदी पाठ करते
दक्षिणावर्ती शंख से तुम्हारे नयन
प्राणों को बना जाते हैं स्वस्त्ययन...
तब उत्सव वस्त्र धारण करता हुआ काल
सप्त द्वीपों को पूरने लगता है दैविक मन्त्रों से
जब कोमल दूर्वा-सा तुम्हारा नारायणीय स्पर्श
उकेर जाता है आप्त श्रुति
तब ग्रह पथ गूँज उठते हैं
औपनिषदिक अभिवन्दना से
हाँ प्रिय
तुम्हारा आगमन
एक अनवरत घटित होता अनुष्ठान है
तुम्हारा स्वर उद्गीथ होकर
उपदिष्ट करता है
और
दिशा दिशा किरणमय हो उठती है
पुण्यशकुन महामंत्रो से
उकेर जाता है आप्त श्रुति
तब ग्रह पथ गूँज उठते हैं
औपनिषदिक अभिवन्दना से
हाँ प्रिय
तुम्हारा आगमन
एक अनवरत घटित होता अनुष्ठान है
तुम्हारा स्वर उद्गीथ होकर
उपदिष्ट करता है
और
दिशा दिशा किरणमय हो उठती है
पुण्यशकुन महामंत्रो से
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